holi kyu manate hai
राग रंग का यह वसन्तीय त्यौहार वसंत आने का सूचक भी होता है | राग जिसे संगीत के नाम से भी जाना जाता है और रंग जिससे हम होली खेलते है , वह दोनों ही इसके अनिवार्य अंग है | इसके साथ ही प्रकृति भी इस समय अपने चरम उत्कर्ष पर होकर अपने रंग चारो तरफ बिखेर रही होती है | होली का त्यौहार बसंत पंचमी के दिन से ही आरम्भ हो जाता है और उसी दिन पहली बार रंग फिजा में उड़ाया जाता है |
holi kyu manate hai- होली हिन्दुओं का एक सांस्कृतिक , धार्मिक व पारम्परिक त्यौहार है जिसे सतयुग से मनाया जाता रहा है | होली का त्यौहार मनाने के पीछे कई तरह की वैदिक कथाये इससे जुडी हुई है जिसमे से एक श्री हरी के प्रिय भक्त प्रह्लाद की कथा है | दूसरी कथा ताड़कासुर वध व शिव विवाह से जुडी हुई है और तीसरी कथा राधा कृष्ण के रास रचाने से सम्बंधित है व अटूट प्रेम को प्रदर्शित करती है जिसके बारे में हम आपको नीचे बता रहे है |
होली क्यों मनाते है
holi kyu manate hai इस बारे में हम आपको नीचे जानकारी दे रहे है | होली मनाने के पीछे निम्न पौराणिक कथाओ का सन्दर्भ दिया जाता है –
भक्त प्रह्लाद से जुडी कथा
भक्त प्रह्लाद एक बालक थे व उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था | वह श्री हरी विष्णु के घोर दुश्मन हिरण्यकश्यप के पुत्र थे | हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को नारायण भक्ति से दूर करने के लिए अथक प्रयत्न किये लेकिन सब बेकार रहा और प्रह्लाद की विष्णु भक्ति बढ़ती ही गयी | जितना ज्यादा हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को श्री हरी से दूर करने का प्रयत्न करते थे वह उतना ही ज्यादा उनका भक्त होता गया |इससे हिरण्यकश्यप को अपना पुत्र ही शत्रु दिखाई देने लगा और वह उसे जान से मारने का प्रयत्न करने लगा |
हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को हाथी से कुचलवाया , सांप से डसवाया , पहाड़ से धक्का दिया लेकिन प्रह्लाद को कुछ भी न हुआ | श्री हरी ने प्रह्लाद को हर विपत्ति से बचा लिया | अब हिरण्यकश्यप को कुछ समझ में नहीं आ रहा था , उसने अपनी बहन से इसका जिक्र किया | उसकी बहन होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान मिला हुआ था |
होलिका होली के अवसर पर प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई होली में बैठ गयी , होलिका स्वयं होली की अग्नि से जल गयी और प्रह्लाद का बाल भी न बांका हुआ | कुछ समय बाद श्री हरी विष्णु ने नृसिंह रूप धारण करके भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्यकश्यप का वध किया | यह कथा हमें शक्ति पर भक्ति की विजय का संदेश देती है जिसके फलस्वरूप होली का त्यौहार मनाया जाता है |
कामदेव से जुडी हुई कथा
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार ताड़कासुर नाम का एक राक्षस था जिसने सभी देवताओं का जीना मुश्किल कर दिया था और सभी देवता उससे युद्ध में हार चुके थे | कोई भी देवता उसे जीतने या उसका वध करने में सक्ष्म नहीं था | सिर्फ शिव से उत्पन्न पुत्र ही उसका वध कर सकता था , लेकिन शिवजी कैलाश पर घोर समाधी में रत थे | देवताओ ने उन्हें तपस्या से उठाने के लिए काफी प्रयत्न किये लेकिन असफल रहे | अंत में उन्होंने कामदेव को शिवजी का तपस्या भंग करने के उद्देश्य से कैलास पर्वत पर भेजा |
कामदेव कैलाश पंहुचा और उसने शिवजी की समाधी को भंग करने के लिए अनेक प्रयत्न किये लेकिन शिवजी पर असर न हुआ | अनेक बार विफल रहने पर कामदेव ने उन पर अपने पुष्प वाण से प्रहार किया जिससे शिवजी की समाधी भंग हो गयी | इससे शिवजी अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया |
जैसे ही शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला कामदेव भस्म हो गया | कामदेव के भस्म होने से सृष्टि में हाहाकार मच गया | इसके बाद देवताओं व कामदेव की पत्नी रति के द्वारा शिवजी की स्तुति किये जाने पर शिवजी ने कामदेव को वरदान दिया और विवाह करने के लिए तैयार हो गए | शिवजी का पार्वती जी से विवाह के लिए तैयार हो जाने पर देवताओं ने उस दिन को उत्सव की तरह मनाया , वह दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा का दिन था | तबसे उस दिन को आज भी उत्सव की तरह मनाया जाता है |
कृष्ण राधा के पवित्र प्रेम के सन्दर्भ में
राधा- कृष्ण के समय में फूलों की होली का प्रचलन था| वह दोनों गोप व गोपियों के साथ मिलकर एक – दूसरे पर रंग , गुलाल के साथ ही फूलों की वर्षा करते थे जिसे आज भी वृज में मनाया जाता है , और रास के नाम से जाना जाता है | ब्रज की लट्ठमार होली भी वही से आरम्भ हुई थी जो आज भी खेली जाती है और ब्रज में लठमार होली को देखने के लिए लाखो की संख्या में श्रद्धालु हर साल इकट्ठा होते है| यही वजह है की होली के माध्यम से कृष्ण व राधा के अटूट प्यार को दर्शाने के लिए आज तक होली खेली जाती है |
holi kab or kaise manayi jati hai
होली हमेशा फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाई जाती है | जब शीत ऋतु ख़त्म होती है और सुहानी वसंत ऋतु का आगमन होता है , वातावरण में चारो तरफ हरे – भरे फूल खिले रहते है , चारो तरफ मादकता छायी रहती है उसी समय होली का त्यौहार सेलिब्रेट किया जाता है | होली को डेट के अनुरूप न मनाकर हमेशा तिथि के अनुरूप मनाया जाता है , यही वजह है की हर साल डेट परिवर्तित होती रहती है |
होली कैसे मानते है
होली मुख्यतः 2 भागों में मनाई जाती है –
1-होलिका दहन
पहले दिन रात्रि में तय समय पर होलिका का पूजन कर उसमे जल , मिष्ठान्न आदि डाला जाता है और इसके साथ ही 7 तरह के अनाज , व उपले आदि को होलिका में डाला जाता है ताकि साल भर घर में धन – धन्य बना रहे | होळिका में मीठा जल [ बाहर की तरफ ] का अर्ध्य देते है , और उसकी परिक्रमा करते है |
बहुत जगहों पर होळिका में उबटन आदि डालने का रिवाज भी होता है | गांव में लोग होळिका की अग्नि को सुबह अपने घर ले जाते है और उसी से चूल्हा जलाते है | इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है |
2- रंग खेलना
अगले दिन रंग , अबीर , गुलाल खेला जाता है व तरह – तरह के पकवान बनाये जाते है | लोग ढोल नगाड़ो की थाप पर फोग गाते है , लोकनृत्य करते है व एक दूसरे के साथ होली खेलते है |शाम को लोग एक – दूसरे के घर जाते है और गले मिलकर एक – दूसरे को होली की शुभकामनाये देते है | घर आये लोगो को गुझिया , चिप्स , पापड़ आदि खिलाया जाता है ताकि साल भर मिठास बनी रहे और लोगो के बीच मधुरता कायम रहे |
होली का उत्सव अमूमन हफ्ते तक चलता है और लोगो का एक – दूसरे के यहाँ आना – जाना व मिलाना लगा रहता है | यह एक परस्पर सहभागिता का उत्सव है जिसे कोई भी व्यक्ति अकेले नहीं मना सकता है |
होली खेलते समय क्या न करे
- जबरदस्ती किसी के ऊपर रंग न डालें , यदि कोई रंग नहीं खेलना चाहता है तो उसकी इच्छा का सम्मान करे |
- होली खेलते समय सिर्फ प्राकृतिक रंगो का इस्तेमाल करे और केमिकल से बने हुए रंग , गुलाल आदि का इस्तेमाल न करे |
- होली खेलते समय आँखों का विशेष ध्यान रखे व आँखों में रंग न जाने दे अन्यथा आपकी आँखों को नुकसान हो सकता है |
- होली के दिन मदिरापान न करे , न ही किसी के साथ अमर्यादित आचरण करे |
- सभी बहन बेटियों व अपने से बड़े लोगो का सम्मान करे और किसी को जबरदस्ती रंग न लगाए |
- राह चलते किसी व्यक्ति को रंग न लगाए , पता नहीं कौन किस परिस्थिति में कहा जा रहा है |
- किसी पर भी कीचड़ , केमिकल व गाड़ी का कचरा न फेंके , न ही किसी को चोट पहुचाये | यह होली का वास्तविक रूप नहीं है |
होली 2024 का मुहूर्त / होलिका दहन का मुहूर्त
24 मार्च को होलिका दहन है | होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर रात के 12 बजकर 27 मिनट तक है | होलिका दहन के लिए सभी को एक घंटे का समय मिल रहा है |
होलिका दहन पूजा की विधि
- सभी लोगो को नहा – धोकर और साफ – सुथरे कपडे पहनकर होलिका दहन स्थान पर जाना होगा |
- अब यहाँ पर आपको पूर्व या उत्तर की तरफ मुँह करके खड़ा होना होगा |
- पूजा करने के लिए गाय के गोबर से प्रह्लाद व होलिका की प्रतिमा बनाये [ आप यहाँ पर उपलों का भी इस्तेमाल कर सकते है ] | वही पूजा सामग्री में रोली , अक्षत , मिठाई , धूप, फूलो की माला , कच्चा सूत , साबुत हल्दी , मूंग , बताशे , गुलाल व नारियल , 7 तरह के अनाज और एक लोटा जल लेकर जाना होगा |
- अब आपको इन सभी सामग्रियों से होलिका माता की पूजा करनी होगी और जल चढ़ाना होगा | पूजा ख़त्म करने के बाद होलिका की 7 बार परिक्रमा करे और हाथ जोड़ कर प्रार्थना करे |
इस तरह से आपको होलिका की पूजा करनी होगी |
अन्य जानकारी पाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे –